मृत्यु संग
मृत्यु संग
मृत्यु से पहले जीवन की संज्ञा
खोजते अनंत काल तक,
मनुष्य हर प्रकार की ढलान को
तय करता है,
कच्चे मिट्टी की समान फ़िर
ख़ुद को, किसी अहं तले फैला हुआ पाता है....।
तारका विहीन अम्बर को
तिमिर से भय कहाँ ,
उस अनंत ज्योत्स्ना से जड़े
आदिकाल से
जड़ से जीवन तक रचना की
विवशता है ये ,
मृत्यु अनिर्दिष्ट है.....।
मृग छलना है तन मनुष्य की
अवशेष है शेष क्षण की
वर्तमान से है विचलित भविष्य से है अपरिचित
सतत प्रयास करे ये हर समय ,
समय ही देता इससे मात है.....।
मृत्य उपरांत हम तारामंडल की
सूक्ष्म तत्व बन जाऐ
श्रेष्ठ कहलाऐ ,
पर जीवन से पहले या जीवन के बाद ,
इच्छाओं को पूर्णता मिलती नहीँ
कौन कह पाया ,
मृत्यु से पहले मृत्यु के बाद
कामनाओं की बलिदान है ये
या फ़िर प्रकाश की अनिश्चित प्रवाह है ये..???