"प्रेम का प्रस्फुटन"
"प्रेम का प्रस्फुटन"
प्रेम चुपके से बिना किसी आहट के तैरने लगा आँखों की झील में
मैं देखता ही रह गया अपलक
प्रेम लेता गया अपनी गिरफ़्त में
मैं बेबस देखता ही रहा
प्रेम ऐसे टपक के आया हथेली में
जैसे आंसू समां गया हो सीपी में बनके सच्चा मोती
प्रेम हरसिंगार सा झरता रहा झुलसता रहा मैं चाँदनी रातों में
हसरतों की धीमी आँच में तृषित चातक सा
प्रेम ऊगता रहा
रिश्तों की बंज़र ज़मीन पर
उम्मीदों की फसल सा
लहलहाता रहा
मैं दूर खड़ा देखता रहा
यादों की वादियों से
प्रेम का ऐसे एका-एक ऊगना
ले लेना मुझे अपने आगोश में
प्रेम चटक गया बन के इंद्रधनुष
मैं चुपचाप खड़ा
रंगों के सतरंगी घेरे में
होता रहा कूची लिए हैरान
आरती तिवारी@c