किताब कैसे पढ़ूं
किताब कैसे पढ़ूं
दिन हैं सवालों के,
जवाब कैसे पढ़ूं।
इन सर्द शामों में,
जिंदगी की किताब कैसे पढ़ूं।
मुरझाये कुसुम हैं,
खुश्बुओं का पता नहीं।
ठिठुरन, जकड़न से भी,
मेरी कोई खता नहीं।
दिन हैं कांटों के,
गुलाब कैसे पढ़ूं।
इन सर्द शामों में,
जिंदगी की किताब कैसे पढ़ूं।
बूदें हैं मनचली,
मौसम आवारा है।
बादलों से ढका,
किस्मत का सितारा है।
दिन हैं उदासी के,
ख्वाब कैसे पढ़ूं।
इन सर्द शामों में,
जिंदगी की किताब कैसे पढ़ूं।
वक्त के अंधड़ ने,
अजब कहर ढहाया है।
उम्मीदों के वृक्षों को,
बेवजह सताया है।
दिन हैं अकाल के,
तालाब कैसे पढ़ूं।
इन सर्द शामों में,
जिंदगी की किताब कैसे पढ़ूं।