आत्मिक रिश्ते
आत्मिक रिश्ते
बेवफा तुम नहीं,
फिर क्यों ये गुमां होता है,
बिन आग,
कब धुआँ होता है।
पहरे तब कम थे ,
आज ज्यादा हैं,
क्या कहें ?
बस इसी बात पर शुबा होता है !
चाहने वाले इधर भी हैं,
उधर भी,
ठहाकों-मस्तियों की ना कमी कोई,
फिर भी दिल तन्हाइयों में खोता है।
कुछ तो बात है तुममें,दुनिया से जुदा,
कुछ मैं भी गुमशुदा,
आगोश में तेरी इक
निष्फिक्र बचपन सोता है।
भूल जाऊं तुमको ,कोई मुश्किल नहीं,
जिम्मेदारियाँ हमारी, कोई कमतर नहीं,
फिर याद करूँ किसे,
इस बात पे दिल रोता है।
नादान नहीं मैं,
समझती हूँ , हालातों को बख़ूबी,
पर तुम्ही कहो ना !
क्या जज़्बातों पर इख़्तियार होता है ?
कैसे कह दें मोहब्बत नहीं!
ये अलग बात है ,जरूरत नहीं!
ज़िक्र तुम्हारे नाम का हो तो
इक इबादत सा करम होता है!
पवन की खुशबू तुम्हे सच कहती है,
बहते आँसू कहते सब झूठ,
हज़ारों सच से बेहतर वो झूठ,
जिनमें तेरे होने का भरम होता है !
क्या कहूँ, शब्द शेष नहीं,
विशुद्ध प्रेम है और कुछ अवशेष नहीं,
तर्क -वितर्क से परे,
आत्मिक भी कुछ होता है !
आखिरी में, ना मिलने का अफ़सोस नहीं,
पता है, यहाँ ना सही,
क्षितिज में ही सही,
धरा व गगन का रूहानी मिलन होता है।