बारिश की बूंदें
बारिश की बूंदें
आज घर की खिड़की से
बस यूं ही देखा
बारिश की बूंदों में उसे
यूं ही मचलते देखा
इस सुहाने मौसम में भी
उसकी आंखो में अविरल
नीर को मैंने बहते देखा
कुछ गम के बादल होंगे
या मिलने की तड़प
आज उनके रुदन की
आवाज़ को गरजते देखा
कुछ बाधाएं बनी थी रुकावट
पर बहते पानी को अपनी
मंजिल को भी पाते देखा
वो आतुर थे मिलने को शायद
इसलिए उन्हें उस गली में
उस घर के सामने जाते देखा
फिर से यूं ही मैंने
घर की खिड़की से देखा
बारिश की बूंदों में उसके
भीगे से चेहरे को देखा
मदहोशी से मिले थे
वो दोनो ऐसे
जैसे आतुर सी नदी को
प्यासे सागर से मिलते देखा
बाहर बरसती बारिश में
बहती सी मंद हवा में
घर के भीतर भी मैंने
उसकी आंखों को
फिर से नम होते देखा।