मेरी दुल्हन
मेरी दुल्हन
मेरा मन जितना प्यार करे
ये भावो से साकार करे
फिर शब्दो का श्रृंगार बना
नस नस पे मीठा वार करे
रस की छलकाती गगरी जब
लगती है पनिहारीन ये सी
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
बन कर के कोई क्षत्राणी
ये दुष्टो का संहार करे
नयनो को ढाल बनाए फिर
पलकोँ को तलवार करे
पहने मुण्डो की माला जब
बन जाती समर भवानी सी
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
तन से पुरी मधुशाला है
मन से ये भोली बाला है
केशो मेँ अंधियारा रातो सा
चेहरे पर गजब उजाला है
होँठो का तिल मानो करता हो
चुंबन की अगवानी सी
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मिसरी सी मीठी बोली है
संग रखती स्नेह की झोली है
इसके पहलु मेँ हर सांझ दिवाळी
हर रोज सवेरे होली है
बासंती रंगो मेँ लगती है
ये कोई मदमस्त जवानी सी
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
रुठे तो नादान लग,
उसकी प्रीती एहसान लगे
में सहज सरल सा मानव हूँ
वो अवतारी भगवान लगे
मै राम हूँ तो वो शबरी है
हुँ किशन तो मीरा दीवानी सी
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरी दुल्हन,मेरी कविता