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खोई हुई वो शाम

खोई हुई वो शाम

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रोज आती थी, गुमसुम सी-

मेरे छत पर अकेली,

न जाने क्या ढूंढ़ती-अपने काँपती उंगलियों से ,

कुछ चुन चुन कर-

अपने पोटली में संजोती,

और चुपचाप चली जाती....




कल मिली तो देखा-

उम्मीद की छोटी डिब्बी में बन्द-

कुछ ख्वाहिशें ...

सुर्ख धूप से चमकती मुंडेरी,

चांदनी में डूबा शीतल आँगन,

महकती बगिया का कलरव,

मंद समीर का मधुर स्पंदन...




एक अनूठा एहसास -

जब वहीं रेत पर बैठ,

हमने बनाया था -

अपने सपनों का महल,

मेरे विश्वास की जमीन पर-

तुम प्रेम की छत ओढ़ा गए थे...



सहेज कर रखा सब-

और फिर साथ खड़े हम -दोनों राह तकते रहे-

पर वो नहीं आई...

दूर क्षितिज पर लालिमा ओढ़े आज बरसों बाद दिखी...

खोई हुई वो शाम....



#पॉजिटिव_इंडिया


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