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अच्छी दोस्त बन के ही रहना

अच्छी दोस्त बन के ही रहना

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छूकर मेरे मन को जब तुमने किया था इशारा ...

मानो बदला था मौसम सारा ...पूरा नज़ारा !

जब से तू जिंदगी में आई थी, नशा बन के छाई थी ..

पता नहीं कब और कैसी? पर 'तेरी आदत सी हो गई थी !

.

बदल गई तुम तो मौसम की तरह, गई मुझे अकेला छोड़कर...

मुझे क्या पता था तुम तो चली जाओगी यूँही मुंह मोड़ कर !

जब जाना ही था तूझे तो...जिंदगी में आई ही क्यूँ ?

क्यूँ दिखाई वो दुनिया और वह ढेर सारे सुनहरे सपने ...


तुझे तो रिश्ता निभाना अच्छी तरह आता है ...

प्राप्त परिस्थितियों पर काबू पाना ही पड़ता है !

मैं तो ठहरा भावनाओं के समंदर मे डुबनेवाला ...

और तुम भावनाओं का व्यवहार से हिसाब रखने वाली !


अरे पगली ! गलती तेरी नहीं ,मेरी ही थी जब समझ आया ...

तब तक वक्त निकल चुका था और सबकुछ खत्म हो चुका था !

जाने दो ना छोड़ो बीती बातों को.. खुश रहो. मुस्कुराती रहो ...

जीवनसाथी नहीं बनी तो क्या हुआ? अच्छी दोस्त बन के ही रहना !




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