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Ayushmati Sharma

Abstract Romance

4.9  

Ayushmati Sharma

Abstract Romance

कोई साथ था वो जाना पहचाना

कोई साथ था वो जाना पहचाना

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वह खुशियों की डगर,

वो राहों में हमसफर,

कोई साथ था वो जाना पहचाना,

जिसके यादों में आज भी दिल है दीवाना।


कोई साथ था वो जाना पहचाना,

मेरे हाथ को था जिसने थामा,

मुझसे ज़्यादा था मुझको पहचाना,

जिसकी यारी ने सिखाया था मुझे जीना,

इस उदास दिल को कैसे हसाना,

कोई साथ था वो जाना पहचाना।


कहीं देखा है तुमने उसे,

क्योंकि आज भी याद आता है,

कैसे वो मुझे सताया करता था,

जब भी उदास होती थी में,

मुझे हासाया करता था,

एक प्यार भरा रिश्ता था वो हमारा,

शायद फस गया वक्त की दलदल में,

इसलिए वापस नहीं आ पाया दोबारा।


कोई साथ था वो जाना पहचाना,

उसके साथ अक्सर हर दिन होता था मस्ताना,

गम तो कई उसने भी देखे,

पर हर राह में लाता था खुशियों का तराना,

कोई साथ था वो जाना पहचाना।


आज कहता है मुझे भूल जाना,

हमसे दूर चले जाना,

अपनी यादों में न बसाना,

कोई साथ था वो जाना पहचाना।


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