गरीब
गरीब
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कडी मेहनत से किसी गरीब को
रोटी का निवाला मिलता है
चुल्हे पे चढता बर्तन जब
पसीना तन का जलता है
ख्वाहिश नहीं महलों की
न ही चाहत हीरे पन्नों
की
देख मुस्कान बच्चों की अपनें
शुकूँन दिल को उसके मिलता है
चुल्हे पे चढता बर्तन जब
पसीना तन का जलता है
.
बँगलों में तुम रहनें वालों
तन का पसीना क्या जानों
कोठी में रात गुजारनें वालों
तुम ठंड का महीना क्या जानों
जरा देखो जाडों के मौसम में
कैसे गरीब ठिठुर कर सोता है
बच्चे रहते हैं भूखे व्याकुल जब
बरसात में छत भी रोता है
चुल्हे पे चढता बर्तन जब
पसीना तन का जलता है
जगदीश पांडेय " दीश"