नफरत की आग
नफरत की आग
चहल-पहल वाला माहौल, हर तरफ रौनक़ बिखरी थी,
रंग-बिरंगी लाइटों से उस जगह की रंगत और निखरी थी,
हर उम्र, हर जात के लोग हर तरफ खुश नजर आ रहे थे,
कहीं थीं बच्चों की किलकारियाँ कहीं बड़े ठहाके लगा रहे थे l
अपने नन्हों को खुश देख वो दम्पत्ति फूला नहीं समा रहा था,
उन तस्वीरों को क़ैद कर कैमरे में वक्त से ख़ुशियाँ चुरा रहा था,
उनकी मासूम हरकतें हर किसी को आकर्षित कर रही थी,
उनकी खुशी औरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट भर रही थी l
तभी अचानक एक धमाके नें वहाँ का नज़ारा बदल दिया,
हँसी-खुशी के माहौल को भगदड़ और चीखों में बदल दिया,
हर तरफ धुएँ का गुबार, बदला हुआ दृश्य दिल दहला रहा था,
धमाकों से फैली आग से कितनों का जिस्म जला जा रहा था l
आतंकवादियों का हमला हुआ है हर कोई चिल्ला रहा था,
धमाके से विकृत हो चुके थे जिस्म कोई घायल छटपटा रहा था
वो परिवार चंद अन्य जली हुई लाशों के बीच नज़र आ रहा था,
जो आकर्षण का केंद्र थे अब हर कोई उनसे नज़रें चुरा रहा था
कुछ दिलों में पलती हुई नफरतों ने उजाड़ दिए फिर कुछ घर,
फिर कुछ मुस्कुराती ख़ुशियों को लग गई ज़ालिमों की नज़र,
बिना कसूर के कुछ मासूमों को फिर मिल गई क्यों सज़ा,
कैसी आग ये आज फैली है, कसूरवार के हाथों बेकसूर को कज़ा l