प्रगति का आगाज
प्रगति का आगाज
1 min
227
हो कृति मेरी ऐसी,
जो मानस पटल को प्रकाशमान कर दे।
लिखूं कुछ ऐसा जो बातों का सलीका सिखा दे।
निगाहों को समझने का हुनर बता दे ।
गढ़ुँ कुछ ऐसा जो अहंकार की जड़ें मिटा दे ।
शुभ घड़ी का संकेत कर,
उमंग आनंद का संचार करा दे।
बुनूँ कुछ ऐसा जो भारत को एक परिवार बना दे।
कपोल कल्पना नहीं नवयुग अंकुरित करा दे।
हर कुरुति पर घात कर,
प्रगति का आगाज करा दे।