लहरों के बीच
लहरों के बीच
लहरों के बीच अपनी कश्ती में
किनारे से दूर बैठा हूँ
मेरा साहिल आएगा मुझको बचाने को
सोच ये मगरूर बैठा हूँ
मगर साहिल ने ही आके
तोड़ डाली कश्ती मेरी
अब तो बस चूर-चूर बैठा हूँ
सोचता हूँ क्यों किया
साहिल पे भरोसा
अब तोड़ के हर गुरूर बैठा हूँ
टूटी कश्ती लेके
बीच समंदर में
मैं तो मजबूर बैठा हूँ
और कोई किसी का नहीं
इस भरी महफिल में दोस्तों !
- समझ ये ज़माने का दस्तूर बैठा हूँ
लहरों के बीच
अपनी कश्ती में
किनारे से दूर बैठा हूँ...।