सौदा दिलों का
सौदा दिलों का
जिसको चाहा था दिलों जान से
बालम साँवरीया हमको ही भुला बैठे।
जाने सच क्या है उनकी तमन्ना
होश खोये हैं कि पर्दा गिरा है बैठे।
सुबह शाम की वो उनकी दिल्लगी,
जो जख्मे दिल को सुकूँ दे जाती थी।
हाय बैरी बेदर्दी निकले,
इश्क की रातें कैसे भूल बैठे।
मोहब्बत के वो जज्बात थे
या नशे मे डुबे थे हुस्न के।
ना काजी ना मौलवी थे
"कबुल" कहके निकाह समझ थे बैठे।
चंद रातें क्या गुजरी जागके,
नूर चाँदनी का उतरा जैसे,
ना शिकवे हुये ना शिकायतें
सौदा दिलों का तोड़ बैठे।