कैसे जुड़ जाते हैं न मन
कैसे जुड़ जाते हैं न मन
कैसे जुड़ जाते हैं न मन कोई रिश्ता नहीं... न कोई दृष्ट-अदृष्ट बंधन... फिर भी तुम हमारे अपने, और हम तुम से.... भावों का बादल सघन बन कर बारिश, कर जाते है नम... उमड़-घुमड़ के कुछ पल लिए उलझन जाती थम... जुदा राहों पर चलने वाले राहियों का जुदा जुदा होना भ्रम... एक ही तो हैं, आखिर एक ही ईश्वर तत्व से समाहित यह जीवन... भाव तिरेक में कह जाते हैं... जाने क्या क्या हम... सोच सोच विस्मित है, अपरिचय का तम.... कैसे जुड़ जाते हैं न मन कितना लिखना है, कितना लिख गया .. और जाने क्या क्या लिखेगी... ज़िन्दगी! तुम्हारी ही तो है न ये कलम...!!!