लुप्त होता प्यार
लुप्त होता प्यार
इस बदलती दुनिया की चकाचौंध में
खो गए हैं कुछ अपने लोग पुराने
लोग जो थे बहुत ही अज़ीज़
लोग जो थे दिल के बहुत क़रीब।
वक़्त से भी ज़्यादा वक़्त दिया जिनको
आज उन्हीं के वक़्त के मोहताज हो गए
ख़ुद से भी ज़्यादा प्यार किया जिनसे
आज उन्हीं की बेरुख़ी के शिकार हो गए।
जाने कब कैसे आया स्वार्थ का दौर
गुरूर का दौर गुमान का दौर
बह गए वो खोटे चापलूसों की भीड़ में
चटक गया नाता खरेपन की जागीर से।
शायद यही है आज के दौर का दस्तूर
होता है प्यार तब तक भरपूर
मतलब से होता है मतलब जब तक
तब तक ही होता है कुछ रिश्तों का वजूद।
वो रिश्ता ही क्या जिसमें दर्द न हो
वो नाता ही क्या जिसमें क़दर न हो
वो सम्बन्ध ही क्या जिसमें खनक न हो
कैसे हैं अपने कोई ख़बर ही न हो।
आने लगे जब अपनों से परायेपन की बू
उड़ जाए जब रिश्तों से प्यार की ख़ुशबू
बेहतर है बनावट और खोखलेपन से कहीं
दिखावों का दफ़न बोझिल रिश्तों की बली।
तो क्यूँ करना गम उनका जो गुम हो गए
ज़िन्दगी आज भी उतनी ही गुलज़ार है
कम ही सही मगर सच्चे तो हैं मन के
जिन के वजूद से अपना वजूद ख़ुशगवार है।।