महत्वाकांक्षाएं
महत्वाकांक्षाएं
1 min
7.1K
आज एक मीठी सी आस जगी है
कुछ कर दिखाने की लगन लगी है
उन चाँद सितारों को तोड़ लूँगी
सूरज का मुख भी मोड़ दूँगी
आज हाथ हैं मुट्ठी भर रेत के बिन
पैरों तले रेगिस्तान भी होगा एक दिन
ये रेगिस्तान भी खाली नहीं रहेगा
इसमें भी खुशिओं का फूल खिलेगा
आज पैर है छोटें और बड़ी है ज़मीं
कल नही होगी उड़ने के लिए पंखों की कमी
जगी है आस की किरण मन में
बहुत बड़ी बनूँगी जीवन में
चाहे जो था कल, चाहे आज जैसा है
अच्छा होगा कल, मेरा विश्वास ऐसा है
मन की महत्वाकांक्षाएं हो जाएंगी पूरी
मुझमें और मेरे सपनों में नहीं रह जाएंगी दुरी
मेरा जीवन संवर जाएगा
मेरी खुशियों का घड़ा भर जाएगा
यकीं है ये सूखा तालाब एक दिन सागर बन जाएगा