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आज़ाद ग़ुलाम

आज़ाद ग़ुलाम

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सुनो!

हाँ तुम!

आज़ाद ग़ुलामों


तुम कहाँ आज़ाद हो,

तुम ग़ुलाम हो,

अपनी ही नौकरशाह सोच के,

तुम खुद्दार नौकर हो,

तुम्हें मज़ा आता है,

ग़ुलामी करने में,

चाकरी करने में,

सुबह दस बजे के बाद,

मैं देखता हूँ,

तुम्हारे हुजूम को,

कितना खुश!


हाँ क्योंकि ये आसान है,

अब आज़ाद भारत में,

आपको मोटी तनख़्वाह

मिलती है,

ग़ुलामी करने की,

और ये आराम की

ग़ुलामी है,

दिन भर फिर आप 

नयी पीढ़ी से कदमताल

करते हो,

मोबाइल पर।


ग़र ग़ुलाम न होते,

तो काम करना पड़ता,

काम अब भी है,

लेकिन उतना नहीं।


हाँ 

तुम ग़ुलाम हो उसके,

जो आज तुम्हारे द्वार पर,

दान मांगने ढोल नगाड़े

के साथ आया है,

आज वह भिक्षु है,

कल से पाँच वर्ष तक

आप होंगे।


आप ग़ुलाम हो,

धर्म के आडम्बर के,

सरकारी तंत्र के,

सवर्ण ग़ुलाम हैं

दलित सोच के,

और दलित?

वे तो खुद की ही सोच से।

आरक्षण के ग़ुलाम आप हो,

क्योंकि आप आराम

के ग़ुलाम हो।


जिन के नाम पर इतना

हल्ला मचा है,

ज़रा उनसे मिलो,

पता चलेगा 

आज़ाद कौन,

ग़ुलाम कौन।


सुना क्या तुमने?

तुम आज़ाद ग़ुलामों ने?

कि तुम ग़ुलाम हो।



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