हमारा स्निग्ध प्यार
हमारा स्निग्ध प्यार
रति से मेरे स्निग्ध स्पंदन को
सहज कर रखा है तुमने
सीपी में मोती के जैसे
आगोश में भरकर कामदेव से तुम
बरसते रहते हो।
घूँट-घूँट पीते मेरी चाहत की अंजूरी
जब-जब मेरे इश्क की सुराही से टपकी
अगाध, अनमोल, अमिट सा समर्पण
एक दूजे के प्रति।
कितनी गिरह से बँधे हैं सदियों से
हर जन्म देते आगाज़ मोहब्बत की गूँज से
मिलती हैं कहीं न कहीं
तुम्हारे प्यार की प्यासी।
ढूँढ लेती है मेरी नासिका तुम्हें
साँसें पहचान लेती है
तुम्हारे तन की चंदन सी गंध से अकुलाती
नागमणि के जैसे लिपटी रहती हूँ तुमसे।
तुम पनाह देते हो मेरे प्यार को
पत्तियों पर ओस के जैसी
मैं निश्चिंत सी समर्पित
सौंपकर खुद को तुम्हें
आँखें मूँद लेती हूँ।
शिव-उमा सा अपना
प्यार बस महसूसो
उर में भरकर
अनंत जन्म जन्मांतर तक।।