... तो मानुं !
... तो मानुं !
हे, जादूगर जहां के,
जला के चौसठ को
ये कौड़ियाँ पागल कर तो मानूं !
काट के पूंछ शेर की,
बकरी बांडी कर तो मानूं !
भली-चंगी बंद ख्वाहिशें,
मत घुमा पुराने पत्तों पे,
रिदम में गुनगुनाते भौरों को
उन्मादी कर तो मानूं !
रूखी - शुष्क ये त्वचा,
नींद मलमल में लपेट कर,
छिन्न-भिन्न सपनों की फिर से,
पुतली जिंदा कर तो मानूं !
जाहल नाजुक जंजीरें
ऋणानुबंध की
तोड़फोड़ कर
कर्ज की रकम सारी
पूरी कर चुकता तो मानूं !
जख्मों में, अंधेरे ग्रहण में,
चांद उड़ेलता आहें और
उड़े राख राख हो कर
वो रात कर चांदी-चांदी कर तो मानूं !