माँ- नज़र का टीका
माँ- नज़र का टीका
टूटती जब हर इक आस है
माँ ही होती मेरे पास है
प्यार से मुझको सहलाती वो
मेरा हर लेती संत्रास है।
जब भी सपनो में आती है
माँ मुझको ढाढस बंधा जाती है
मेरी चिंता, सभी दुःख मेरे
साथ अपने वो ले जाती है।
मेरे बचपन की थाती है
वो मेरे जीवन की बाती है
वही मुझको मानव बनाकर गयी
संस्कारों की देकर वही दोस्त बन जाती थी।
वो मेरी संग घंटो वो बतियाती थी
अपने दुःख, सारी तकलीफ़ वो भूलकर,
गाती- मुस्काती थी।
आज भी मेरे मन में बसी
प्यार-ममता की मूरत है वो
सब बलाओं से रखती बचा
जैसे टीका नज़र का है वो।