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Poonam Matia

Abstract

4.0  

Poonam Matia

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माँ- नज़र का टीका

माँ- नज़र का टीका

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372


टूटती जब हर इक आस है

माँ ही होती मेरे पास है

प्यार से मुझको सहलाती वो

मेरा हर लेती संत्रास है।


जब भी सपनो में आती है

माँ मुझको ढाढस बंधा जाती है

मेरी चिंता, सभी दुःख मेरे

साथ अपने वो ले जाती है।


मेरे बचपन की थाती है

वो मेरे जीवन की बाती है

वही मुझको मानव बनाकर गयी

संस्कारों की देकर वही दोस्त बन जाती थी।


वो मेरी संग घंटो वो बतियाती थी

अपने दुःख, सारी तकलीफ़ वो भूलकर,

गाती- मुस्काती थी।


आज भी मेरे मन में बसी

प्यार-ममता की मूरत है वो

सब बलाओं से रखती बचा

जैसे टीका नज़र का है वो।


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