उदासियाँ
उदासियाँ
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न जाने क्यों ये उदासियाँ बिन बुलाए
मेहमान की तरह...
बस यूँ ही चली आया करती हैं
न जाने क्यों आँसुओं की चंद बूँदें
अक्सर आँखों के सूखे कोनों से
बरबस ही छलक पड़ती हैं !
न जाने क्यों मेरे जिस्म के पोर पोर में
दर्द की हज़ारों किरचें
बेइंतहा चुभा करती हैं
न जाने क्यों मेरी अज़ाब रुह की पनाह में
तन्हाइयों की बेख़ौफ़
आँधियाँ चला करती हैं !
कैसे आज़ाद करूँ क़ैद ए कफ़स से
ऐ दिल तुझको ?
रुसवाइयों के बाज़ार में मेरी दास्ताँ
बस यूँ ही नीलाम हुआ करती है