आंतरिक इच्छाएँ
आंतरिक इच्छाएँ
पापा, मैं भी पढ़ना- लिखना चाहता हूँ,
पढ़ लिखकर इतिहास गढ़ना चाहता हूँ।
होती है घुटन मुझे, शहरों की चकाचोंध से,
लगता नही है अच्छा, होटलों की प्लेटे परोसना।
बतलाओ न पापा, क्या है ? क़सूर मेरा,
इंसान होना या आर्थिक तौर पर कमजोर होना।
पापा, निकालो न इस दलदल से मुझे,
मैं भी बड़ा इंसान बनना चाहता हूँ।
लगते नहीं है अच्छे, चाय के धब्बे वस्त्रो पर,
पापा, मैं भी ब्रांडेड- ब्रांडेड पहनना चाहता हूँ।
पापा, यू न कुचलो मेरे सपने पैसों तले,
मैं भी सपने साकार करना चाहता हूँ।
पापा , मैं भी पढ़ना- लिखना चाहता हूँ,
पढ़ लिखकर इतिहास गढ़ना चाहता हूँ।
इस सिरफिरी सी दुनिया में, पंख लगाकर,उड़ना चाहता हूँ,
पापा, मैं भी पढ़ना-लिखना चाहता हूँ।
पापा, दे दो न आजादी ,मेरे सपनो को,
मैं भी इतिहास गड़ना चाहता हूँ।
पापा, मैं पढ़ना चाहता हूँ,
पापा मैं पढ़ना चाहता हूँ ।