दिवस काल
दिवस काल
बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं
क्षणिक पल में हालात नज़र आते है
शब्दों का कोई मोल नही अब
हर राह में बदलाव नज़र आते हैं।
ठिठुर कर बैठ गए हैं सब कुछ
ऐसे लोगों में भाव नज़र आते हैं
बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं।
बस्तियां सुनी सुनी लगती हैं
महफ़िल खाली खाली लगती है
हाथों में लोगो के जाम नज़र आते हैं
खुदगर्ज़ी में लिपट के रह गए
ख़ुद के आग़ोश में ढह गए।
बेख़बर से हो गए हैं लोग
बेख़ुदी ज़िक्र से थकते नहीं
ऐसे ही कुछ भाव नज़र आते हैं
बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं।
दिन हीन की व्यथा बुरी है
नाप-तोल के सवाल नज़र आते हैं
सरेआम कह कर हँस रहे जो
ऐसी खिखोलिया से गुजरती
मक़ाम नज़र आते हैं।
कौन, किसका, कितना है
इन सवालों में खोए
हम इंसान नज़र आते हैं
ऐसे ही कुछ भाव नज़र आते हैं
बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं।