मैं अनेक हूँ
मैं अनेक हूँ
सड़क पे एक्सीडेन्ट में लोगो को मरते देख
डरने वाला आदमी।
ऑफिस में लेट पहुँचने के डर से
सड़क पे सरपट दौड़ लगाने वाला
आदमी ऑफिस में अपने से छोटे स्टाफ को
झूठ बोलने पे गाँधी का लेक्चर देने वाला आदमी।
और घर पे पड़ोसी से बचने के लिए,
बेटे से झूठ कहलवाने वाला आदमी।
कोर्ट में क्लर्क के पैसे मांगने पे,
झुंझलाने वाला आदमी।
और रोड पे एक का सिक्का मिलने पे,
चुपचाप जेब में रखने वाला आदमी।
सुबह जल्दी उठने का निश्चय कर,
रात को जल्दी सोने वाला आदमी।
और सुबह थोड़ा और थोड़ा और कर
देर से उठकर झुंझलाने वाला आदमी।