गुल्लक...
गुल्लक...
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एक मिट्टी की गुल्लक में
कुछ छोटे छोटे लम्हे
जमा कर रखे हैं मैंने
कुछ अनकही सी बातें
कुछ अधूरे से सपने
छोटी छोटी ख़ुशियाँ कुछ
कुछ दर्द हैं हल्के फुल्के
कुछ भूली बिसरी यादें हैं
कुछ नज़्में हैं अधूरी सी
मेरे जाने के बाद
तोड़ देना ये गुल्लक
बिखरा देना इन सब को
आसमान के आँगन में
और रस्मों के बंधन से
कर देना आज़ाद इन्हें !