ख़तरा-ए-हुक्म सरकार
ख़तरा-ए-हुक्म सरकार
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मैंने छूकर देखा
पानी और ख़ुशबू को , वे अब भी पवित्र थे पूर्ववत
पवित्रता क़ायम-मुक़ाम थी अब भी शब्दों की
किन्तु फिर भी मुस्कुरा रहे थे बुद्ध
बुद्ध का मुस्कुराना तय कर रहा था बहुत कुछ
जैसे यही कि रंग-बिरंगी पतंगें उड़ती रहेंगी पूर्ववत
या कि फिर तितलियों तक को
उड़ान भरने से पहले लेना होगा पासपोर्ट
ख़तरा-ए-हुक्म सरकार तामील करो
कितना पास ? कितना पास ?
कितना दूर ?