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Abasaheb Mhaske

Others Romance

5.0  

Abasaheb Mhaske

Others Romance

कितने हसीन वो दिन...

कितने हसीन वो दिन...

1 min
1.4K


कितने हसीन वो दिन थे, प्यारा बचपन ,ना कुछ खोने का डर था ...

ना कुछ पाने कि फिकर .. बस अपनी धुन मे मस्त मगन !

कितना खेलकूद - मौज मस्ती , आम चुरा कर भाग जाना ...

पकड़े जाने के बाद घरवालों की पड़ी मार,गुस्सा छोड़कर घाट पर तैरना !


यह कौन सा मोड़ आया है जिंदगी का सब कुछ तो है मगर ...

जाने क्यूँ अधूरा - अधूरा सा लगता है, तुम फिर से याद आती हो !

तेरी जगह तू सही मेरी जगह मैं सही , मेरी कायरता तेरी आशंका ...

ग़लती किसकी समझ में आया.. तब तक फैसला हो चुका था !


क्या खोया, क्या पाया, क्यूँ छलता है सवाल इतना ?

तू आई थी जिंदगी में तूफान की तरह और चली गयी...

तेरा फैसला हमेशा कि तरफ सही साबित हुआ, मेरा गलत !

तू फिर जीती मैं हारा मगर दिल ही नहीं मानता मैं क्या करूँ ?


अब तुही बता मैं समझ सकता हूँ, तेरी मजबूरी ,तेरा प्यार लेकिन ...

यह पगला दिल मानने को तैयार ही नहीं जाने वाले लौट के नहीं आते कभी !

मैं थक चुका हूँ उसे समझाते की तुम नहीं आओगी कभी फिर भी....

मेरा दिल कहता है...एक दिन वो ज़रूर आयेगी, कहाँ गये वो दिन ... !


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