वो आँखें
वो आँखें
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वो आंखे,
जिसमें रंग बिरंगी तितली,
जिसमें कड़कड़ाती बिजली,
जिसमें चाँद की हैं चांदनी,
जिसमें सुबह की हैं रौशनी.
वो आँखे,
जिसमें उड़ रहे है पंछी,
जिसमें धुप खिली है हल्की,
जिसमें बहती नदिया का जल,
जिसमें मंद हवा कल कल.
वो आँखें,
जिसमें कोयल की ककार,
जिसमें फूलो की बौछार,
जिसमें ठहरा हुआ सा बादल,
जिसमें लहेरे उठे है चंचल.
वो आंखे,
जिसमें गहराई सागर सी,
जिसमें तन्हाई कागज़ सी,
जिसमें जलती हुई कोई ज्वाला,
जिसमें छुपा कोई बहाना.
वो आँखे,
जो बन गयी पुरानी यादे,
रुक गई अब सभी फरियादें,
बंद हुए बिते दिन रात,
बंद आँखे बन गई याद।