चाहत
चाहत
शोख-ए-ज़िन्दगी के बहुत लम्हे गुजारे होंगे तुमने उसके साथ
कभी उल्फ़त की आग से चिराग जलाकर रौशनी लेकर तो देख,
वो आज भी अंधेरे कोने मे बैठा तेरा इंतजार करता है
इन आवारगी की गलीयों से निकल तु उन रास्तों पर चल कर तो देख,
राख और ख़ाक हो चुके है उसके सारे ख़्वाब
तु आकर बुझते अंगारों पर एक सांस फूंककर तो देख,
उठकर आंधी तूफ़ान मचल उठेंगे वो सारे
तू एक दफ़ा बेरुखी का पर्दा उठाकर तो देख,
ना सिर्फ़ ज़रूरतें ख़्वाब से बढ़कर ज़िंदगी जियेंगे
आ तु किनारे छोड़ समंदर पार चल कर तो देख,
तेरी खुशबू से महक उठेंगे वो मोहब्बत में
तू इस "मुसाफ़िर" से दिल लगाकर तो देख।