नई सोच
नई सोच
एक शेष एक विशेष,
बने न कोई अब अवशेष।
नियति ने अवसर दिया,
सूरज ने आशा से सजा दिया।
ढला नहीं है अभी दिन,
ऊर्जा का संचार है।
पतझड़ नहीं,
सावन की फुहार है।
बस चहूँ और एक ही गुहार है,
हर योजना पुरजोर है।
भूत को भविष्य बनाने का शोर है,
सबकी साधना में प्रेरणा का जुनून है।
किस्मत की लंबी होती लकीर देखकर,
सबको मिल रहा सुकून है।
हौले-हौले फिर बन रही बुनियाद है,
हुबहू प्रकृति के बनने की शुरूआत है।
सबके कोटि प्रयास को
कोटि कोटि प्रणाम है।।