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Shailaja Bhattad

Others

4.5  

Shailaja Bhattad

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खामोश जिंदगी

खामोश जिंदगी

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जिंदगी खामोश बन

 अबूझ यादों के झरोखों में सिकुड़ती जा रही थी।

 जीने का मकसद कहीं दूर छोड़,

 उलझती जा रही थी।

 लेकिन वक्त, वक्त हर वक्त नया कुछ बुनता है।

 नदी हर पल नई राह बनाती है।

 बादल भी अपना मकसद लिए ,

पवन से गले लगता है।

 फिर जीवन को ताल बनाना,

 बुद्धि पर ताले लगाना,

 खुद के लिए महफूज नहीं ।

विचारों में कैद रहना,

 अस्तित्व मिटाने से कम नहीं।।


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