सुनों मित्र
सुनों मित्र
मैं उस दिन उदास था
बहुत उदास।
आत्महत्या के बारे में सोच चुका था।
मैंने सब से ले ली थी
मानसिक विदाई।
सब की हर याद से भी।
तब पहली बार तुम आये थे
स्विच-आफ करने से ठीक पहले
मेरे मोबाइल पर।
तुम्हारी आवाज़ का उत्साह
बहुमूल्य था तुम्हारे लिए।
मेरे लिए निरर्थक।
छः वर्ष बाद पुनः पढ़े पोस्ट कार्ड
के लेखक से बातें करता उत्साह तुम्हारा!
पढ़ने वाले उत्साह ने
बाँध लिया था। मेरी निर्लिप्तता को।
और उस खेद ने भी
कि आलसी स्वभाव से पत्रोत्तर में विलंब हुआ।
मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था....
न तुम्हारा उत्साह। न ही खेद।
मुझे नहीं था याद कुछ भी।
इतने वर्षों बाद ....
न तुम्हारा नाम न अपना कार्ड।
मेरी उदासीनता पर तुमने
किसी प्रारब्ध की बात रख दी थी हौले से।
और मैं हैरान था कि आत्महत्या भी कही स्थगित होती है!