कागज़ के दर्द
कागज़ के दर्द
कागज़ के दर्द को कोई
कहाँ समझ सकता है
जिस के दिल मे जो होता है
वो ही छुरा चलाता है उस पर
कोई अपनी खुशियाँ लिखता
तो कोई अपने दर्द लिखता
कोई स्याही से लिख देता है
तो कोई अपना खून बहाकर
कोई अपने आँसू टपका देता है
कागज़ के दिल का दर्द
कोई समझ नही पाता
कोई बेवजह ही फाड़ता रहता है
टुकड़े इतने कर देते की जोड़ नहीं पाते
कोई इस पर तस्वीरे बनाता
देवी माँ हो देवता की
कोई लिखता है ग्रंथ हर धर्म के
अब तो आ गया इंटरनेट का ज़माना
अब कागज़ भी किसी रोज़
कहानी ना बन जाये
ई बुक का आ गया ज़माना है