झोपड़ी में
झोपड़ी में
दीपावली तुम आना मेरे गरीब के झोपड़ी में
हमारे तो दो वक्त की रोटी में पकवान समाये हैं।
एक टिमटिमाते तेल के दीपक की लौ से भी
अमावस की काली रात भी सपनों में सजाये हैं।
दीप जलाकर हम भी खूब दिल को बहलायेंगे
जलाके दीपक आँखो के तेल से हम नहलाये हैं।
घरों में चमक रही है रंगीन रौशन रोषणाई
वही चकाचौंध आज नैनों में पराये साये हैं।
आज की परेशानियों को ना दिल में सजाते हैं
हम मतवाले ना कल की चिंता में रहते खोये हैं।
यह दीपावली दीपों की महफिलें बड़ों के लिये है
हम तो इसे शामियानों में बिछाने खातिर आये हैं।।