घुसखोरी
घुसखोरी
अजीब अपने देश का शासन हो गया
जनता अब तो आसन हो गई
अधिकारियों का बोलबाला है
जनता अब तो बौनी बाबा है
एक ओर नहीं सब ओर घुसखोरी है
ध्यान से देखो तो जनता मुँहमोड़ी है
अजब गजब का मेला लगता
दिन रात पैसे वालों का बोलबाला है
दर्द से पीड़ा बढ़ जाता है
जब नंगे पाँव बूढ़ा जाता है
तारीख पर तारीख की सुनवाई सुन
जब भूखे प्यासे घर वह निराश आता है
देख कलेजा फट जाता है
जब घूसखोरों का पेट निकल आता हैं
शासन प्रशासन की देख रवैया
जब वह हार कर यहां से जाता है
यह दर्द गरीबों के लिए बन जाता
जब वह रिश्वत देने के लिए हट जाता
गौर से देखो तो वह गरीब
सब के लिए दुश्मन बन जाता
जवानी भी कोर्ट कचहरी थाने
का चक्कर लगाते बीत जाता
रख माथे पर अदालत की फ़ाइल
सच को यहां जब झूठ कहलाता
देख अमीरों का दंगा
जब गरीब बेसहारे हो जाते तंग
होकर निराश जब जब घर आते
देख गरीबी की हालत खुद शरमाते
पहन वर्दी कसम भारत माँ की
जो खाकर आते है
रक्षा के नाम पर वो घूसखोर हो जाते है
बन दलाल थाने का चोर हो जाते
हॉबी पैसे वालों का तब
कोर्ट कचहरी थाना हो जाता
पढ़ लिख ऑफिसर उनके लिए
अंधा लाठी का सहारा हो जाता
कब मिटेगा दलाली, घुसखोरी यहां से
कब तक अधिकारी, ऑफिसर बने रहेगे
घूसखोर ग़रीबो के लिए बड़े स्वामी यहाँ पर
कब ईमानदारी वाली सरकार आएगी यहाँ पर
जिस दुःख दर्द से आज रो रहा
मानव ! नही लगता आगे चलेगा
अब धरती माँ का कोई मानव
खो गई मानवता इतिहास से
अब नही लगता फिर भारत
सोने की चिड़िया कहलायेगी
फैली घुसखोरी कोई नही रोक पायेगा
अब फिर कैसे भारत राम राज्य कहलायेगा