कपड़ा भी भेष बदलता है
कपड़ा भी भेष बदलता है
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कपड़ा भी भेष बदलता है
कपड़ा सही है , हिफ़ाज़त के लिये हो जब तक़ ,
गलत हो जाता है , गुलामी की वज़ह बनकर ।
मुर्दा मज़ारों ,
इबादत-ख़ानों की मरमरी दीवारों ,
समाधी के पत्थरों , अरे !!
चूमने की तुम्हें तो , रवायत है यहां ,
रब के बनाये ज़िन्दा किसी शाहकार को चूम लें तो ,
क्यूं हाहाकार होता है ॥