हँसना भूल गए है लोग
हँसना भूल गए है लोग
जाने क्यों आदत से मजबूर हूँ मैं,
अपनी ही दुनिया मे खुश हूँ मैं,
ना ही किसी से कोई दोस्ती है,
ना ही किसी से कोई दुश्मनी है,
अपनो से भी ना कोई गिला ना
शिकायत,
अपने ही ख्वाबो में खोयी रहती हूँ,
अपने ही कामो में खुश रहती हूँ,
क्या हो रहा है क्यों हो रहा है तमाशा
मेरे आस पास मुझे इससे कोई मतलब नही,
अपनी ही धुन में जीये जा रही हूँ,
लिखने का है बस शौक दिल
चाहे जब पूरा कर लेती हूँ..
जब देश के नेता गलत भाषा का प्रयोग करते है
तो दिल को ठेस लगती है और मन उदास हो जाता है
दिल सोच में पड़ जाता है कि क्या होगा भविष्य इस देश का
जो मरे हुए लोगो पर भी छीटा कांशी करने वालो के
हाथ मे क्यों ये देश को सौंपना चाहते है