अनमोल वृक्ष
अनमोल वृक्ष
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देख कर मानव हाथों को
वृक्ष यूं हँस कर बोला
अपने ही इन हाथों से
तुमने मृत्यु द्वार क्यों खोला?
मिटा कर जीवन मेरा तुम घुट-घुट कर मर जाओगे
वातावरण दूषित होगा, तुम रोक इसे न पाओगे।
पी लेते है हम जिस विष को, तुम न इसे पी पाओगे
हमें मारकर विष पीने को
विवश तुम भी हो जाओगे।
स्वच्छ हवा हम देते तुमको
हम ही सावन लाते है
क्या पता नहीं मानव तुझको
हम काम तेरे कितने आते है।
अपने को बढ़ा-बढ़ाकर, हमको क्यों इतना घटा दिया
अपने तुच्छ स्वार्थ की खातिर
अनमोल वनों को क्यों कटा दिया
क्यों वृक्षों को इतना घटा दिया.