इन्तजार मे आँखे
इन्तजार मे आँखे
पोते के इन्तजार मे
दादी बार बार बूढ़ी
आँखो मे चश्मा
लगाकर देखती है
दरवाजे की तरफ
बार बार नजर जाती है
पोता आफिस से अभी
वापिस नही आया था
घबराहट बैचेनी से
दिल भर आया था
बस उसके इन्तजार
मे डर और भय से
मन ही मन मे
काँप जाती है
जब बेटे बहू की
याद आ जाती है
बहुत ही दुःखी होती है
दस साल पहले जब
कार दुर्घटना हुई है
बेटे बहू की मौत हो गई
हाँ पोते की जान बच गई
बस ईश्वर की अजीव
बिचित्र ही माया थी
बहुत दुःखी हुई रोई
पर भगवान की
माया कुछ समझ
मे नही आई
दो की मौत एक
की जिन्दगी बचाई
बहुत बडे दुःख मे
एक छोटी सी
खुशी भी पाई
नियति की बडी
अजीव ही लीला है
पप्रकर्ति ने हर किसी
के साथ खेल खेला है
पोते की जान बचाकर
मन को कुछ तो
राहत पहुँचाई है
उसी पोते के इन्तजार
मे बूढ़ी दादी परेशान है
क्यों कि पोते की जान
मे दादी की जान है ।