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माँ की ममता

माँ की ममता

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बच्चा पैदा होते ही 

माँ कहकर रोता है

माँ की ममता से

बड़ा होता है ।

कभी हसँना  है

कभी रोता है 

माँ  की ममता को

अपने मे संजोता  है

माँ तो बच्चे पर जैसे

जान छिड़कती  है

रोने पर तड़पती  है

सीने से लगाकर

दूध पिलाती है

सहलाती दूलारती है

माँ की ममता पाकर

बच्चा बड़ा  होता है

कभी पेट के बल

घिसटता  है

कभी हाथों का बल

लगाकर बैठता है

घुटनों  के बल चलता है ।

खड़े  होने की कोशिश  मैं 

गिरता है सम्भलता  है

चोट लगने पर रोता है

खुश होने पर हंसता है

माँ की ममता का प्रेम का

पल पल साथ होता है

माँ  अपनी ममता से

सींचती  है सवारती  है

रोने पर थकने पर

मालिस करती है

अपनी ममता के प्रेम से

आचल से सीचती है

बच्चे के हर दुःख मे

दुःखों  से छटपटाती है

दिल के दर्द से तड़पती  है

कभी कभी विचलित होती है

हर समय  बच्चे

के दुख को

अपने में समेटती है ।
ऊँगली  पकडकर

चलना सीखाती  है

ऊठता है गिरता है

संभालता  है चलता है

दो चार कदम चलता है

फिर गिरता है

चोट लगती है

दर्द माँ को होता है।

बच्चे को चलाने में 

हर दुःख  दर्द सहती है

बचपन में खिलौने  से

बच्चे को खिलाती है

चलाने मे स्वयं  खिलौना

बनकर पीठ पर बैठाती है

खिलौना बन जाती है

माँ तो बस माँ  है

ममता की मूरत

बन जाती है ।

 


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