उम्मीद किससे लगायें
उम्मीद किससे लगायें
उम्मीद किससे लगायें
समझती क्यूं नहीं,पत्थरों पर सर पटकती
साहिल पे,निढाल होती लहरें,
समझती क्यूं नहीं
पत्थरों पर सर पटकती
साहिल पे
निढाल होती लहरें,
कि व्यवस्थायें ढीठ हैं,
बदल पायेंगे कुछ,
कोशिशें अब नाक़ाम हैं
कांधे पे ज़नाज़ा उठाये,
पिता अभागा,
बेज़ुबान था,
नशे की क़ैद से,
ऐसे छूटा, बेटा उसका
कैसा नादान था
बुढ़ापे का सहारा बनता
ख़्वाहिशें अब नाकाम है ॥
ताजी तरकारी ,सिर पर
नयी उम्मीद का टोकना *
कुछ और कर ले पगली
टपकती लार
और जमाने का टोकना
घात लगाये, बाज़ों की
कोशिशें कब नाक़ाम हैं
बढ़ती उम्र, मायने अलग
सामने जगह पाती ,
पुरानी होती शराब .
पिछ्वाड़े से भी पीछे
धकेला जाता, बूढ़ा बाप ,
और पुराना असबाब
हमारी फ़रहत-बक्श**
परवरिशें अब नाकाम हैं ॥
कुछ तो है कम, ज़िंदगी में
पर खुलता नहीं ये राज़
ख़्वाहिशों को पर लगे हैं
और कोशिशें नाकाम हैं ||
(*टोकना = बांस की बड़ी टोकरी , **फ़रहत-बक्श = सफल और समृध्द )