पहरेदार हूँ मैं
पहरेदार हूँ मैं
अगर क़ातिल के खिलाफ़ कुछ भी न बोलने की
तुमने ठान ली है
अगर हत्यारों को पहचानने से इनकार करने पर
तुम्हें कोई आत्म ग्लानि नहीं होती
अगर लुटेरों को न ललकारने का
तुम्हें कोई पछतावा नहीं
अगर अंधकार में जीना तुम्हें प्यारा लगने लगा है
तो ज़रा होश में आ जाओ
मेरे शब्द चौकीदार की तरह
तुम्हारे चरित्र के एक एक पहलू पर रात दिन पहरा देते हैं
तुम्हारी करतूतों के पीछे घात लगाऐ बैठे हैं वे
तुम तो क्या तुम्हारी ऊँची से ऊँची
धोखेबाज कल्पना भी
उनकी पकड़ से बच नहीं पाऐगी
परत दर परत एक दिन खोल खालकर
तुम्हें नंगा कर देंगे मेरे शब्द
तुम दोनों हाथों से बर्बादी के बीज बोते हो
पता है मुझे
तुम्हारी दोनों आँखों को
बेहिसाब नफ़रत करने का रोग लग चुका है
तुम्हारे पैरों में रौंदने की सनक सवार है
तुम्हारी जीभ से हर वक़्त ये लाल लाल क्या टपकता है?
तुम्हारी सुरक्षा के लिए सत्ता ने पूरी ताक़त झोंक दी है
आज तुम सबसे ज्यादा सुरक्षित हो
तुम्हारे इर्द गिर्द हवा भी
तुम्हारे विपरीत बहने से काँपती है
तुमने इंच दर इंच
अपने बचाव के लिऐ दीवारें तो खड़ी कर दी हैं
फिर भी… फिर भी… फिर भी….
अपनी आसन्न मौत के भय से
सूखे पत्ते की तरह हाड़ हाड़ काँपते हो
पता है मुझे
यहाँ यहाँ इधर सीने के भीतर
रह रहकर लावा फूटता है
नाच नाच उठता है सिर
तुम्हारे खेल को समझते बूझते हुऐ भी
जड़ से न उखाड़ पाने के कारण
अन्दर अन्दर लाचार धधकता रहता है
अपने पेशे के माहिर खिलाड़ी हो लेकिन
अपने मकसद में कामयाब रहते हो लेकिन
घोषित तौर पर विजेता ज़रूर हो लेकिन
विचारों की मार भी कोई चीज़ होती है
सच की धार भी कोई चीज़ होती है
तुमसे लड़ लड़कर मर जाने के बाद
मैं न सही
मेरी कलम से निकला हुआ एक एक शब्द
तुम्हारी सत्ता और शासन के खिलाफ़
मोर्चा दर मोर्चा बनाता ही रहेगा|