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समय

समय

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बिग बैंग से पहले समय नहीं था ,

स्पेस नहीं था ,

सिन्गुलरीटी में थी दुनिया ,


फिर अचानक ,

बूम ...विस्फोट


और समय चल पड़ा ,

चलता गया ,

एक ही दिशा में ,


युग आयें ,

सभ्यताएं आयीं ,

ना जाने कितनी प्रजाति ,

आती गयीं ख़त्म होती गयी ,


पर समय बढ़ रहा है ,

निरंतर

सतत

अविराम

एक ही दिशा में गति जारी है ,


कोई है क्या पड़ाव ?

कितनी दूरी और अभी बाकी है ?


तेरे – मेरे जीवन की घटनाओं से ,

इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता ,

ये जानता है अपनी मंज़िल ,

इसे कोई नहीं रोक सकता है ,


समय ...

मिलेगा उसी सिन्गुलरीटी से,

पर

फिर ये ,

घटनाक्रम क्यूँ ???

मानव का अस्तित्व ही क्यूँ ???


समय –

ये ही है सच्चाई ,

जो हम सबकी समझ से परे है ,


एक से चला ,

एक में ही जाना है ,

क्षणिक तेर –मेर , भ्रम ये पुराना है ,


एक से एक तक का सफ़र

एक ही रह जाना है ,

समय का तो इशारा है

क्या हमने पहचाना है ? 


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