दिल कभी टूटता ही नहीं
दिल कभी टूटता ही नहीं
दिल कभी टूटता नहीं
और नाही चटखने की कोई आवाज़ ही आती है।
ये तो बस एक गोश्त का टुकड़ा है
जो गलता जाता है यादों के तेज़ाब में
बड़ी शिद्दत से गुजरता है रगों में खून
और खुद जर्रा जर्रा घुलता जाता है
उसी लहू में।
वो मुरझाई कली उसके गमले को
मायूस कर रही सुबह होने तक
कि काश बचा लेता वो उसे तेज़ हवाओं से शायद
वहीं कोने पे पड़ी है अब भी वो छोटी सूरजमुखी
दिल मुरझा गया था एक दफ़ा
उस सूरजमुखी की तरह
याद है वो जूतियाँ जिन्हें संडे बाजार से लाया था
तुम्हारे लिए एक कागज़ का दिल चिपका कर।
सस्ता बोल के तुमने उमेठ दी थी
उस दिल की सारी कोरें,
तेरे आने के इंतज़ार में
बाहर सीढ़ियों से सटी बैठी हैं वो जूतियाँ
दिल भी थोड़ा मसल गया था
दिल की सारी कोरें ऐंठ गयी है
ये दिल है की हर हाल में जिंदा है
मसल जाता है, कुचल जाता है
मुरझा जाता है, रौंद के चले जाते है लोग ,
औऱ हां!
झूठे वादों के नशतर तुम चुभो सकते हो दिल मे कई बार
लेकिन तुम तोड़ नही सकते दिल
कोई लोहा लाट है क्या?
दिल कभी टूटता ही नहीं
और नाही चटखने की कोई आवाज़ ही आती है।
ये तो बस एक गोश्त का टुकड़ा है।
घुलता जाता है जर्रा जर्रा गलता जाता है।