सिपाही
सिपाही
जब लेते जान वो जाकर,
कश्मीर की घाटियों में,
तब मनायें हैं सब त्योहार,
हमने गली-महोल्लो में।
नहीं चाहिये सम्मान फूलों का,
ना ही सलामी तोपों की,
इनकी चाहत है सरहद पार,
लहराते अपने तिरंगे की।
शहीदों की ये ज्वाला ना रुकेगी,
ना ही हम रुकने देंगे,
जब तक देश पूरा ना हो,
दिल्ली तुमको सोने नहीं देंगे।
बहुत हो चुका सर झुकाना,
अब तो बारी काटने की है,
देश से कचरा साफ़ करते,
अंदर के दुश्मन मिटाने की है।
लड़ते नहीं वो सिर्फ़,
मुल्कों की सरहद के लियें,
मिल जाते वो माटी से,
वतन की सरपरस्ती में।
है आज़ाद तो दे दो,
आज़ादी हमारे जवानो को,
देशद्रोह की आवाज़ पर,
अंकुश इन्हें लगाने को।
फिर हिम्मत ना होगी,
किसी की आँख तक उठाने की,
भारत माँ के सपूत है ये,
औलाद नहीं किसी कायर की।