क्या सच में
क्या सच में
हक़ से पागल कहते है वो मुझे
पर इसी पागल के लिए
पागलपन रखते है,
इश्क़ पर लिखनेवाली से
वो इश्क़ की बातें करते है।
अपने घर की जगह वो मेरे
दिल में रहने की चाहत कभी
कभी बयां करते है,
खुद तो वो मौत से भी नहीं डरते
पर उनको खोने के डर से हम डरते है।
गाना सुनने के बहाने ही हम उन्हें कॉल
करके परेशान करते है,
हिमालय के सपने बुनते बुनते वो दिल्ली में
फर्स्ट डेट पर पोहा खाने की बातें करते है।
पर क्या सच में वो अपने कुत्ते से ज्यादा
मुझे प्यार करते है?
क्या वो साथ होने पर पिंकी को भी कभी
कभी दो पल हमारे साथ बिताने का मौका
दे सकते है?
क्या वो रात के अंधेरे में चाँद के सामने अपने
चाँद को ताड़ने में दिलचस्पी रख सकते है?
क्या वो मुझसे लड़ाई होने पर मुझे इग्नोर न
कर गुस्सा होना पसन्द कर सकते है?
क्या वो मेरे हर आँसू से अपनी ही शर्ट गिली
करने की चाहत रख सकते है?
क्या वो मेरे जिस्म से पहले रूह छू सकते है?