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Himanshu Aditya Bahuguna

Abstract Others

2.0  

Himanshu Aditya Bahuguna

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न जाने क्या खोजता हूँ

न जाने क्या खोजता हूँ

1 min
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न जाने क्या खोजता हूँ भरे मकान के खाली कोनो मे लटके हुए केनवास पर एक तस्वीर जो अधूरी है या जान के छोड़ी है अधूरी रंगों के अभावों मे जो वक़्त के साथ फीके हो पड़े थे फिर नज़र पड़ी किताबो की सेल्फ पर जिस के ऊपर जमी धुल पर अब भी बाकि थे उन उँगलियों के निशान और बगल ही मे रखी थी वो किताब अधपढ़ी अधखुली कुछ मुड़े पन्नों के साथ वो किताब जो अब भी इंतजार में  है उसको पढ़े जाने का उन उंगलियों का उस पर फिर से फेरे जाने का पर आंगन मे रखी उस आराम कुर्सी पर फिर कोई न बैठा जिसे फुरसत हो उसे हाथो मे ले कर पूरा पढ़ पाए दिखती है मुझको वो तस्वीर, किताब और कुर्सी उस भरे मकान में कुछ खोजती मेरी ही तरह


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