एक थी छोटी सी मिनी
एक थी छोटी सी मिनी
एक थी छोटी सी मिनी
मस्त,अल्हड़ ,हर वक़्त
ठिठोली करती,
बदमाशी की नयी-नयी
योजनायें बनाती,
दीदी और माँ को पटा कर
खेलने भाग जाती,
बात बेबात भाई से झगडती
दोस्तों को परेशान करती,
खेल मे नक़ल कर
हमेशा जीत जाती,
दुनिया की तमाम
उलझनों से बेखबर,
अपनी ही सपनो की दुनिया
मे जीती,
पर पता नहीं था उसे की
सपनो मे और हकीकत मे
कितना फासला है,
आज उसे देख कर
कोई नहीं बोलता की
वो वही है,
न हंसती न सपने
देखती हैं,
बस चुप चाप अपनी
दुनिया मे कैद
अपने फ़र्ज़ को निभाने
की कोशिश करती है ..