मधुयामिनी
मधुयामिनी
अधरों से अधरों ने मिलके
कल रात एक दूजे का हर राज़ जाना ,
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर एक दाग़ छुपाना !
दो जिस्मों ने कल रात मिलके
एक नयी कहानी गढ़ी
बात दो अजनबी से
एक होने की ओर बढ़ी
रात ने जब ख़ामोशी की चादर ओढ़ी
आँखों ने शरारत की
इस तरह हम दोनो ने
इश्क़ की पहली सीढ़ी चढ़ी
रात की ख़ामोशी में ही सीखा
हमने बिन बोले सब कह जाना !
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर एक दाग़ छुपाना !
अधर जो कल तलक
माध्यम थे एक दूजे से जुड़ने के
आज मौन थे
मगर सांसें गुफ्तगू कर रही थी
एक दूजे के दरमियान कल तलक
थे जो लज्जा के फ़ासले
आज ऐसे मिटें कि शर्म ओ हया की सब बातें
फ़िज़ूल लग रही थी
दो जिस्मों ने कल रात तय कर लिया था
रूह तक का फ़ासला
सो आज क़ायनात भी
इस रिश्ते को क़बूल कर रही थी
लज्जा के पर्दे गिराकर ही
सीखा हमने दो जिस्म एक जान हो जाना !
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर एक दाग़ छुपाना !
चूड़ी, कंगन, पायल, पाजेब
सब आवाज़ें संगीत लगी
हर आह, हर वाह, हर बोली
फिर कोई मधुर गीत लगी
अहम की कालिमा पे
समर्पण का जो सुनहरा रंग चढ़ा
तो अपनी हार और
उनकी जीत में भी अपनी जीत लगी
ख़ुद को खोकर ही
सीखा हमने ख़ुद को पाना !
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर दाग़ छुपाना...!